History of pundir's rajput( part-2)





|| पुंडीर क्षत्रिय राजवंश ||

पिछले भाग से आगे ........

बात है उत्तरप्रदेश के वर्तमान जिले शामली में स्थित राजा मनहर सिंह पुण्डीर की , जिनका किला था मनहरखेड़ा।।

वर्तमान शामली में आनेवाला क़स्बा जलालाबाद और उसके आस पास का इलाका पहले राजा मनहर सिंह पुंडीर का राज्य था और इसे मनहर खेडा कहा जाता था। इनका ओरंगजेब से शाकुम्भरी देवी की ओर सडक बनवाने को लेकर विवाद हुआ, मुद्दा था की जो भी इस रास्ते  से गुजरेगा वो सड़क निर्माण में अपने योगदान स्वरुप एक टोकरा मिटटी का खोद कर डालेगा जो सब के लिये राजा मनहर सिंह पुंडीर का आदेश भी था, इसमें छुट किसी को नहीं थी चाहे राजा या रंक आम ओ ख़ास सब पर ये आदेश अमल था , एक रोज जब औरंगजेब की बेगम  का काफिला  जब इस रास्ते से गुजरा  तो शर्त अनुसार उन्हें भी यानि सब को जो काफिले में थे , बेगम समेत एक टोकरा मिटटी खोद कर सड़क हेतु डालने के लिये कहा गया जो औरंगजेब की बेगम को नागवार गुजरा और उन्होंने बड़े रौब से कहलाया की क्या तुम्हारा राजा वे जानते नहीं हैं की हम हिंदुस्तान मुल्क के  मालिक  औरंगजेब की बेगम हैं, और उनके आदेश के कारण उन्हें इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं ,ये बात जब राजा मनहर सिंह पुंडीर तक पहुंची और उन्हें सारा किस्सा बताया गया तो , राजा मनहर सिंह पुंडीर ने कहलवाया की मेरा आदेश सब पर एक समान लागू है इस में कोई फर्क नहीं कौन क्या है क्या नहीं मेरी  नज़र में आम ओ खास सब एक हैं और मेरा आदेश सब पर एक समान लागू है , नतीजा चाहे कुछ भी हो , ये बात सुन कर और आदेश प्राप्त कर राजा मनहर सिंह पुंडीर के सैनिक बेगम के समक्ष आये और राजा  मनहर सिंह पुंडीर के आदेश का पालन करते हुए  उनके सैनिकों ने उन्हें कहा की यहाँ के राजा तो मनहर सिंह पुंडीर हैं और उनका आदेश , प्रभु के आदेश के समान माना जाता है इस कारण आप भी उस आदेश से बंधी  हैं और आदेश का पालन किये बगैर आप यहाँ से जा नहीं पाएंगे और ऐसा कह कर सैनिकों ने पुरे काफिले को आदेश का पालन करने के  लिये बाध्य कर दिया और उन्होंने औरंगजेब की बेगम  से एक टोकरा मिटटी सड़क में डलवा कर ही दम  लिया जिस का बदला लेने की भावना मन में लिये औरंगजेब की बेगम वहीँ से  वापस दिल्ली की ओर रवाना  हो गई , और उन्होंने जब ये सारा व्रतांत औरंगजेब से कह सुनाया तो  इसके बाद ओरंगजेब के आदेश पर सेनापति जलालुदीन पठान ने मनहरखेडा पर हमला किया और इस में एक स्थानीय किले में रहने वाले रसोइये ने रात के खाने में जहर मिला कर गद्दारी करते हुए रात में  किले का दरवाजा खोल दिया। जिसके बाद रात में हुए अचानक नरसंहार में सारा राजपरिवार मारा दिया गया। सिर्फ एक रानी उस परिवार की जो गर्भवती थी और उस समय अपने मायके में थी बस वह बच गई थी ,उसकी संतान से ही मनहर सिंह पुंडीर का वंश आगे चला और मनहरखेडा रियासत के वंशज आज सहारनपुर के ,भारी,भावसी और काशीपुर गाँव में रहते हैं,

इस राज्य पर जलालुदीन ने कब्जा कर इसका नाम जलालाबाद रख दिया।ये किला आज भी शामली रोड पर जलालाबाद में स्थित है।

जलालाबाद के पठानो के उत्पीडन की अति हो गई तो ये शिकायत जब उस समय के सनातन धर्म रक्षक वीर बाबा बंदा  सिंह बहादुर जो एक मिन्हास राजपूत थे पर गई तो उन्होंने कुछ दिन बाद ही इस इलाके  के पुंडीर राजपूतो की मदद से जलालाबाद पर बाबा वीर बन्दा बहादुर ने हमला किया.बीस दिनों तक सिखो और पुंडीर राजपूतो ने किले का घेरा रखा,यह मजबूत किला पूर्व में पुंडीर राजपूतो ने ही बनवाया था ,इस किले के पास ही कृष्णा नदी बहती थी, बाबा वीर बंदा बहादुर ने किले पर चढ़ाई के लिए सीढियों का इस्तेमाल किया, रक्तरंजित युद्ध में जलाल खान के भतीजे ह्जबर खान,पीर खान,जमाल खान और सैंकड़ो गाजी मारे गए,जलाल खान ने मदद के लिए दिल्ली गुहार लगाई,
दुर्भाग्य से उसी वक्त जोरदार बारीश भी शुरू हो गई,और कृष्णा नदी में बाढ़ आ गई,वहीँ दिल्ली से दो सेनाएं एक जलालाबाद और दूसरी पंजाब की और भेज दी गई ,पंजाब में बाबा वीर बंदा सिंह की अनुपस्थिति का फायदा उठा कर मुस्लिम फौजदारो ने सनातन  सिखों पर भयानक जुल्म शुरू कर दिए, इतिहासकार खजान सिंह के अनुसार इसी कारण बाबा वीर बंदा सिंह बहादुर और उसकी सेना ने वापस पंजाब लौटने के लिए किले का घेरा समाप्त कर दिया,और इस कारण जलालुदीन पठान बच गया.

शेष अगले भाग में .......

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